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SSB Interviews: Ground Realities...!!!

Day 1 - The Day of Arrival Candidates will be asked to report at CMO of the particular railway station. At the pre-informed time they will be received by the officials and then after the formal verification of their identities they will be taken to the SSB center. After reaching the center actual verification of their documents will be done and their eligibility will be verified and then chest no’s will be allotted to them. In Air force (Refer 2nd Day), candidates will be offered breakfast in the morning only after which first round of tests will begin (as for Air Force the reporting time is generally 600 hrs and for ARMY it is around 1300 hrs). In case of Army after getting the chest no's.candidates will be allotted with temporary barracks for staying on that day. It’s recommended to get relaxed and get used to the things; environment and most importantly try to mingle with the group as much as they can as SSB is all about leadership and team management. Day2 - The Day of Screen...

कर्मपथ

कर्मपथ कर्मपथ पर इस प्रखरतर, फूल भी हैं, शूल भी हैं, अल्पजन अनुकूल हैं, पर सैकड़ों प्रतिकूल भी हैं                    तालियों की टूट है                    पर गालियां भरपूर इस पर,                   संकटों के शैल शत शत                   मोह भ्रम के मूल भी हैं, किन्तु सुख दुःख से सदा ही एक सी अभिनन्दना ले चलते रहना तुम निरंतर चिर विजय की कामना ले 

Sometimes...when it happens...

Sometimes I feel...Sometimes I think...Sometimes I believe... Sometimes Life is like a Dream...     Sometimes Dreams are not what they Seems... Sometimes Laughter can heal our Hearts...     Sometimes its Laughter that breaks it Apart... Sometimes the World goes faster than We can go...     Sometimes even Fast is still too Slow... Sometimes Loneliness is what we Need...     Sometimes there is a Harvest without a Seed... Sometimes Darkness can be too Bright...     Sometimes Rain gives us Delight... Sometimes We think we Understood...     Sometimes We know We really Can't... Sometimes it seems Finishing things off is the Gain...     Sometimes its what that makes most Pain...

Why Married DAUGHTERS comes to visit their PARENTS...?

बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर बेटियाँ पीहर आती है अपनी जड़ों को सींचने के लिए  तलाशने आती हैं भाई की खुशियाँ वे ढूँढने आती हैं अपना सलोना बचपन वे रखने आतीं हैं आँगन में स्नेह का दीपक बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर ~~~ बेटियाँ ताबीज बांधने आती हैं दरवाजे पर कि नज़र से बचा रहे घर वे नहाने आती हैं ममता की निर्झरनी में देने आती हैं अपने भीतर से थोड़ा-थोड़ा सबको बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर ~~~ बेटियाँ  जब भी लौटती हैं ससुराल बहुत सारा वहीं छोड़ जाती हैं तैरती रह जाती हैं घर भर की नम आँखों में  उनकी प्यारी मुस्कान जब भी आती हैं वे, लुटाने ही आती हैं अपना वैभव  बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर प्यारे    पा पा, "बेटी" बनकर आई हु माँ-बाप के जीवन में, बसेरा होगा कल मेरा किसी और के आँगन में, क्यों ये रीत "रब" ने बनाई होगी, "कहते" है आज नहीं तो कल तू "पराई" होगी, देकर जनम "पाल-पोसकर" जिसने हमें बड़ा किया, और "वक़्त" आया तो उन्ही हाथो ने हमें "विदा" किया, "टूट" के बिखर जाती है हमारी "ज़िन्दगी " व...

Sanskrit-The Mother of all Languages

Sanskrit is considered as a remote cousin of all the languages of Europe excepting the Finnish, Hungarian, Turkish and Basque. Around 2000 B.C an ancestral group of dialects arose among the tribesmen of South Russia. With Panini (probably 4th century B.C.) the Sanskrit language reached its classical form. It developed a little thence forward except in its vocabulary. The grammar of Panini, Asthadhyayi pre-supposes the work of many earlier grammarians. Latter grammars are mostly commentaries on Panini, the chief being Mahabhasya by Patanjali (Second Century B.C) and the Benaras-Commentary of Jayaditya and Vamana (Seventh Century A.D.). It was from the time of Panini on-wards, that the language began to be called Samskarta, perfected or refined, as opposed to Prakras (natural), the popular dialects which had grown over time. In all probability, Panini based his work on the languages as it was spoken in the North West. Beginning as the lingua franca of the priestly class, it gradually b...

हालात-ए-मुल्क

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वो रस्सी आज भी संग्रहालय में है जिस्से गांधी बकरी बांधा करते थे किन्तु वो रस्सी कहां है जिस पे भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु हसते हुए झूले थे? हालात-ए-मुल्क देख के रोया न गया, कोशिश तो की पर मूंह ढक के सोया न गया देश मेरा क्या बाजार हो गया है .... पकड़ता हूँ तिरंगा तो लोग पूछते है कितने का है... वर्षों बाद एक नेता को माँ गंगा की आरती करते देखा है, वरना अब तक एक परिवार की समाधियों पर फूल चढ़ते देखा है। वर्षों बाद एक नेता को अपनी मातृभाषा में बोलते देखा है, वरना अब तक रटी रटाई अंग्रेजी बोलते देखा है। वर्षों बाद एक नेता को Statue Of Unity बनाते देखा है, वरना अब तक एक परिवार की मूर्तियां बनते देखा है। वर्षों बाद एक नेता को संसद की माटी चूमते देखा है, वरना अब तक इटैलियन सैंडिल चाटते देखा है। वर्षों बाद एक नेता को देश के लिए रोते देखा है, वरना अब तक "मेरे पति को मार दिया" कह कर वोटों की भीख मांगते देखा है। पाकिस्तान को घबराते देखा है, अमेरिका को झुकते देखा है। इतने वर्षों बाद भारत माँ को खुलकर मुस्कुराते देखा है।

हिन्दू और मुस्लमान

ये पेड़ ये पत्ते ये शाखें भी परेशान हो जाएं ! अगर परिंदे भी हिन्दू और मुस्लमान हो जाएं . . . . . सूखे मेवे भी ये देख कर हैरान हो गए.. न जाने कब नारियल हिन्दू और खजूर मुसलमान  हो गए...... न मस्जिद को जानते हैं , न शिवालों को जानते हैं जो भूखे पेट होते हैं,वो सिर्फ निवालों को जानते हैं | मेरा यही अंदाज ज़माने को खलता है, की मेरा चिराग हवा के खिलाफ क्यों जलता है | मैं  अमन पसंद हूँ ,मेरे शहर में दंगा रहने दो... लाल और हरे में मत बांटो ,मेरी छत पर तिरंगा रहने  दो.... . . . . .