शुन्य

जंगल जंगल ढूंढ रहा है,
मृग अपनी कस्तूरी !
कितना मुश्किल है तय करना,
खुद से खुद की दूरी !

भीतर शुन्य
बाहर शुन्य
शुन्य चारों ओर है !
मैं नहीं हूँ मुझमें,
फिर भी "मैं - मैं"
का ही शोर है !!

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