माँ
जब आंख खुली तो माँ की गोदी का एक सहारा था, उसका नन्हा सा आंचल मुझको भूमण्डल से प्यारा था । उसके चेहरे की झलक देख चेहरा फूलों सा खिलता था, हाथों से बालों को नोंचा पैरों से खूब प्रहार किया, फिर भी उस माँ ने पुचकारा हमको जी भर के प्यार किया। मैं उसका राजा बेटा था वो आंख का तारा कहती थी, उंगली को पकड. चलाया था पढने विद्यालय भेजा था। मेरी नादानी को भी निज अन्तर में सदा सहेजा था । मेरे सारे प्रश्नों का वो फौरन जवाब बन जाती थी, मेरी राहों के कांटे चुन वो खुद गुलाब बन जाती थी। मैं बडा हुआ तो कॉलेज से इक रोग, प्यार का ले आया, जिस दिल में माँ की मूरत थी वो एक रामकली को दे आया। शादी की, पति से बाप बना अपने रिश्तों में झूल गया, अब करवाचौथ मनाता हूं माँ की ममता को भूल गया। हम भूल गये उसकी ममता जो, मेरे जीवन की थाती थी, हम भूल गये अपना जीवन वो अमृत वाली माती थी। हम भूल गये वो खुद भूखी रह करके हमें खिलाती थी, हमको सूखा बिस्तर देकर खुद गीले ...