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शुन्य

जंगल जंगल ढूंढ रहा है, मृग अपनी कस्तूरी ! कितना मुश्किल है तय करना, खुद से खुद की दूरी ! भीतर शुन्य बाहर शुन्य शुन्य चारों ओर है ! मैं नहीं हूँ मुझमें, फिर भी "मैं - मैं" का ही शोर है !!

Another year in the Bucket...

27th BirthDay... another 25th November...!! another year ends and an another year starts.... one more number added to the bucket, one more year gone from the tray... and here I am standing in the midst of my life half gone and half waiting at the doorstep... thousands of memories... millions of moments... some brings the happiness, makes me smile again and again... some brings the tears and rips me apart...!! thousands of dreams....hundreds of desires...all are bundled in these numbers... So, half done..what now...!!! wait for the rest half to pass...!! well...I don't think...seasons do change so as life...and one has perfectly said that Life is deciduous. Every end brings a new beginning, every night brings a new morning.... New ambitions, new desires... agreed have already lost the thousands of dreams so what..will brings millions new colors... colors which can bring happiness on the faces waiting since ages to smile.. though I don't beleive in resoulutions

Kaaba: The Forgotten SHIVA Temple

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Muslims are Idol Worshipers in Mecca ? Muslims are idol worshiper too, on their visit to mecca, they follow Vedic rituals prescribed in Koran. In Koran it is clearly ordered by so called god, allah, that killing idol worshipers pleases allah, so would Muslims kill themselves to please allah in adherence to this demand of allah – after all they are also idol worshipers. Isn’t this a blasphemy, where they do not kill themselves for being idol worshipers – are they not kafirs themselves – which they call Hindus, Christians and Buddhists because they are idol worshipers too. Everything is same, the only difference is, they respectfully kiss the idol but do not fold hands towards it. And why they will do so, to differentiate themselves from others, they use open hands. Otherwise, each and everything they practice in Mecca is nothing but ignorantly following Vedic principles. Was the Kaaba Originally a Hindu Shiva Temple? P.N. Oak, a great historian awarded by US o

माँ

जब आंख खुली तो माँ की गोदी का एक सहारा था, उसका नन्‍हा सा आंचल मुझको भूमण्‍डल से प्‍यारा था । उसके चेहरे की झलक देख चेहरा फूलों सा खिलता था, हाथों से बालों को नोंचा पैरों से खूब प्रहार किया, फिर भी उस माँ ने पुचकारा हमको जी भर के प्‍यार किया।  मैं उसका राजा बेटा था वो आंख का तारा कहती थी, उंगली को पकड. चलाया था पढने विद्यालय भेजा था।  मेरी नादानी को भी निज अन्‍तर में सदा सहेजा था ।    मेरे सारे प्रश्‍नों का वो फौरन जवाब बन जाती थी,  मेरी राहों के कांटे चुन वो खुद गुलाब बन जाती थी।  मैं बडा हुआ तो कॉलेज से इक रोग, प्‍यार का ले आया,  जिस दिल में माँ की मूरत थी वो एक रामकली को दे आया।  शादी की, पति से बाप बना अपने रिश्‍तों में झूल गया,  अब करवाचौथ मनाता हूं माँ की ममता को भूल गया।    हम भूल गये उसकी ममता जो, मेरे जीवन की थाती थी, हम भूल गये अपना जीवन वो अमृत वाली माती थी।  हम भूल गये वो खुद भूखी रह करके हमें खिलाती थी, हमको सूखा बिस्‍तर देकर खुद गीले में सो जाती थी।  हम भूल गये उसने ही होठों को भाषा सिख

जीवन

मौत से पहले,मरना मत, परिणाम से पहले, डरना मत ! रगों में तेरे, खून है, आलस से, पानी,करना मत !! उम्मीद, जीत की रखना तू, स्वाद कर्म का, चखना तू! तू सोना है, कुछ कम तो नहीं, एकबार, कसौटी पर रखना तू !! तुझमे सारे है, भेद छुपे, तेरा कोई भी, पार नहीं ! दिल में, तूने जो ठान लिया, कभी जाता वो बेकार नहीं !! सब दौलत, तेरे दिल में है, फिर भी तू, मुश्किल में है ! तू ढूंढ़, खज़ाना अंदर का, फिर राजा, तू हर महफ़िल में है !! तू जोश जगा और डर को भगा, सारी बाधाये, छुप जायेंगी ! है कीमत, तेरी हिम्मत की, राहें फिर, शीश झुकायेगी !! पत्ता भी, दामन छोड़े ना, चाहे कितने, तूफ़ान चले ! सूख गये, जो ड़ाल पर, वो खा, पी कर भी नहीं पले !! भाग्यशाली हो, तुम कितने, तनिक इसका तुम, विश्वास करो ! सभी बातें, तुम में भी है, कभी खुद में, तुम तलाश करो !! है ज्ञान का, भण्डार तू, और मेहनत का, पहाड़ तू ! बकरी नहीं, तू शेर है, कभी खुल के, तो दहाड़ तू !! कहते है, जबतक सांस है, तबतक, पूरी आस है ! फिर निकल पड़ो, उस राह पर, जिस मंज़िल की,

सैनिक

जब तुलसी पर नागफनी की, पहरेदारी भाती है तब धरती भी गद्दारो के, रक्त की प्यासी हो जाती है। जब कुरुक्षेत्र में अर्जुन भी , कायरता दिखलाता है गदा युद्ध के नियम में , जब भीम भी चोटे खाता है। जब समाज में वस्त्र हरण को, पुरुषोत्सव समझा जाता है जब भी राजा, पुत्रमोह में, धृतराष्ट् बन जाता है। कोई भीष्म और द्रोण भी , सत्ता से बन्ध जाते हो कर्ण जैसे महावीर भी जब , जब सत्ता को समझ न पाते हो। और विदुर का निति ज्ञान जब , अंतिम साँसे गिनता हो तब पुनः भूत में जा गीता का,  पाठ पढ़ाना पड़ता है। पाञ्चजन्य के शंखनाद से , अलख जगाना पड़ता है देश धर्म की रक्षा के हेतू से,  शस्त्र उठाना पड़ता है। कृष्ण खड़े हो दूर तो भी, अभिमन्यु बन जाना पड़ता है चक्रव्यूह को भेदने को , पौरुष दिखलाना पड़ता है। संकट की घड़ियों में बस, सैनिक बन जाना पड़ता है। सैनिक बन जाना पड़ता है सैनिक बन जाना पड़ता है |

साहित्य मनीषी या खलनायक

हैं साहित्य मनीषी या फिर अपने हित के आदी हैं, राजघरानो के चमचे हैं, वैचारिक उन्मादी हैं, दिल्ली दानव सी लगती है, जन्नत लगे कराची है, जिनकी कलम तवायफ़ बनकर दरबारों में नाची है, डेढ़ साल में जिनको लगने लगा देश दंगाई है, पहली बार देश के अंदर नफरत दी दिखलायी है, पहली बार दिखी हैं लाशें पहली बार बवाल हुए. पहली बार मरा है मोमिन पहली बार सवाल हुए. नेहरू से नरसिम्हा तक भारत में शांति अनूठी थी, पहली बार खुली हैं आँखे, अब तक शायद फूटी थीं, एक नयनतारा है जिसके नैना आज उदास हुए, जिसके मामा लाल जवाहर ,जिसके रुतबे ख़ास हुए, पच्चासी में पुरस्कार मिलते ही अम्बर झूल गयी, रकम दबा सरकारी, चौरासी के दंगे भूल गयी भुल्लर बड़े भुलक्कड़ निकले, व्यस्त रहे रंगरलियों में, मरते पंडित नज़र न आये काश्मीर की गलियों में, अब अशोक जी शोक करे हैं, बिसहाडा के पंगो पर, आँखे इनकी नही खुली थी भागलपुर के दंगो पर, आज दादरी की घटना पर सब के सब ही रोये हैं, जली गोधरा ट्रेन मगर तब चादर ताने सोये हैं, छाती सारे पीट रहे हैं अखलाकों की चोटों पर, कायर बनकर मौन रहे जो दाऊद के विस्फोटों पर, ना तो कवि, ना कथ