Posts

Showing posts from 2015

माँ

जब आंख खुली तो माँ की गोदी का एक सहारा था, उसका नन्‍हा सा आंचल मुझको भूमण्‍डल से प्‍यारा था । उसके चेहरे की झलक देख चेहरा फूलों सा खिलता था, हाथों से बालों को नोंचा पैरों से खूब प्रहार किया, फिर भी उस माँ ने पुचकारा हमको जी भर के प्‍यार किया।  मैं उसका राजा बेटा था वो आंख का तारा कहती थी, उंगली को पकड. चलाया था पढने विद्यालय भेजा था।  मेरी नादानी को भी निज अन्‍तर में सदा सहेजा था ।    मेरे सारे प्रश्‍नों का वो फौरन जवाब बन जाती थी,  मेरी राहों के कांटे चुन वो खुद गुलाब बन जाती थी।  मैं बडा हुआ तो कॉलेज से इक रोग, प्‍यार का ले आया,  जिस दिल में माँ की मूरत थी वो एक रामकली को दे आया।  शादी की, पति से बाप बना अपने रिश्‍तों में झूल गया,  अब करवाचौथ मनाता हूं माँ की ममता को भूल गया।    हम भूल गये उसकी ममता जो, मेरे जीवन की थाती थी, हम भूल गये अपना जीवन वो अमृत वाली माती थी।  हम भूल गये वो खुद भूखी रह करके हमें खिलाती थी, हमको सूखा बिस्‍तर देकर खुद गीले में सो जाती थी।  हम भूल गये उसने ही होठों को भाषा सिख

जीवन

मौत से पहले,मरना मत, परिणाम से पहले, डरना मत ! रगों में तेरे, खून है, आलस से, पानी,करना मत !! उम्मीद, जीत की रखना तू, स्वाद कर्म का, चखना तू! तू सोना है, कुछ कम तो नहीं, एकबार, कसौटी पर रखना तू !! तुझमे सारे है, भेद छुपे, तेरा कोई भी, पार नहीं ! दिल में, तूने जो ठान लिया, कभी जाता वो बेकार नहीं !! सब दौलत, तेरे दिल में है, फिर भी तू, मुश्किल में है ! तू ढूंढ़, खज़ाना अंदर का, फिर राजा, तू हर महफ़िल में है !! तू जोश जगा और डर को भगा, सारी बाधाये, छुप जायेंगी ! है कीमत, तेरी हिम्मत की, राहें फिर, शीश झुकायेगी !! पत्ता भी, दामन छोड़े ना, चाहे कितने, तूफ़ान चले ! सूख गये, जो ड़ाल पर, वो खा, पी कर भी नहीं पले !! भाग्यशाली हो, तुम कितने, तनिक इसका तुम, विश्वास करो ! सभी बातें, तुम में भी है, कभी खुद में, तुम तलाश करो !! है ज्ञान का, भण्डार तू, और मेहनत का, पहाड़ तू ! बकरी नहीं, तू शेर है, कभी खुल के, तो दहाड़ तू !! कहते है, जबतक सांस है, तबतक, पूरी आस है ! फिर निकल पड़ो, उस राह पर, जिस मंज़िल की,

सैनिक

जब तुलसी पर नागफनी की, पहरेदारी भाती है तब धरती भी गद्दारो के, रक्त की प्यासी हो जाती है। जब कुरुक्षेत्र में अर्जुन भी , कायरता दिखलाता है गदा युद्ध के नियम में , जब भीम भी चोटे खाता है। जब समाज में वस्त्र हरण को, पुरुषोत्सव समझा जाता है जब भी राजा, पुत्रमोह में, धृतराष्ट् बन जाता है। कोई भीष्म और द्रोण भी , सत्ता से बन्ध जाते हो कर्ण जैसे महावीर भी जब , जब सत्ता को समझ न पाते हो। और विदुर का निति ज्ञान जब , अंतिम साँसे गिनता हो तब पुनः भूत में जा गीता का,  पाठ पढ़ाना पड़ता है। पाञ्चजन्य के शंखनाद से , अलख जगाना पड़ता है देश धर्म की रक्षा के हेतू से,  शस्त्र उठाना पड़ता है। कृष्ण खड़े हो दूर तो भी, अभिमन्यु बन जाना पड़ता है चक्रव्यूह को भेदने को , पौरुष दिखलाना पड़ता है। संकट की घड़ियों में बस, सैनिक बन जाना पड़ता है। सैनिक बन जाना पड़ता है सैनिक बन जाना पड़ता है |

साहित्य मनीषी या खलनायक

हैं साहित्य मनीषी या फिर अपने हित के आदी हैं, राजघरानो के चमचे हैं, वैचारिक उन्मादी हैं, दिल्ली दानव सी लगती है, जन्नत लगे कराची है, जिनकी कलम तवायफ़ बनकर दरबारों में नाची है, डेढ़ साल में जिनको लगने लगा देश दंगाई है, पहली बार देश के अंदर नफरत दी दिखलायी है, पहली बार दिखी हैं लाशें पहली बार बवाल हुए. पहली बार मरा है मोमिन पहली बार सवाल हुए. नेहरू से नरसिम्हा तक भारत में शांति अनूठी थी, पहली बार खुली हैं आँखे, अब तक शायद फूटी थीं, एक नयनतारा है जिसके नैना आज उदास हुए, जिसके मामा लाल जवाहर ,जिसके रुतबे ख़ास हुए, पच्चासी में पुरस्कार मिलते ही अम्बर झूल गयी, रकम दबा सरकारी, चौरासी के दंगे भूल गयी भुल्लर बड़े भुलक्कड़ निकले, व्यस्त रहे रंगरलियों में, मरते पंडित नज़र न आये काश्मीर की गलियों में, अब अशोक जी शोक करे हैं, बिसहाडा के पंगो पर, आँखे इनकी नही खुली थी भागलपुर के दंगो पर, आज दादरी की घटना पर सब के सब ही रोये हैं, जली गोधरा ट्रेन मगर तब चादर ताने सोये हैं, छाती सारे पीट रहे हैं अखलाकों की चोटों पर, कायर बनकर मौन रहे जो दाऊद के विस्फोटों पर, ना तो कवि, ना कथ

जो हवाओं में है

जो हवाओं में है, लहरों में है वह बात    क्यों नहीं मुझमें है?     शाम कंधों पर लिए अपने ज़िन्दगी के रू-ब-रू चलना रोशनी का हमसफ़र होना उम्र की कन्दील का जलना आग जो     जलते सफ़र में है वह बात    क्यों नहीं मुझमें है?     रोज़ सूरज की तरह उगना शिखर पर चढ़ना, उतर जाना घाटियों में रंग भर जाना फिर सुरंगों से गुज़र जाना जो हंसी     कच्ची उमर में है वह बात    क्यों नहीं मुझमें है?     एक नन्हीं जान चिड़िया का डाल से उड़कर हवा होना सात रंगों के लिये दुनिया वापसी में नींद भर सोना जो खुला     आकाश स्वर में है वह बात    क्यों नहीं मुझमें है?

Oldest, Biggest and Greatest Secret Society of the WORLD...!!!

The Nine Unknown Men According to occult lore , the Nine Unknown Men are a two millennia-old secret society founded by the Indian Emperor Asoka 273 BC. The legend of The Nine Unknown Men goes back to the time of the Emperor Asoka, who was the grandson of Chandragupta. Ambitious like his ancestor whose achievements he was anxious to complete, he conquered the region of Kalinga which lay between what is now Calcutta and Madras. The Kalingans resisted and lost 100,000 men in the battle. At the sight of this massacre Asoka was overcome and resolved to follow the path of non-violence. He converted to Buddhism after the massacre, the Emperor founded the society of the Nine to preserve and develop knowledge that would be dangerous to humanity if it fell into the wrong hands. It is said that the Emperor Asoka once aware of the horrors of war, wished to forbid men ever to put their intelligence to evil uses. During his reign natural science, past and present, was vowed to secrecy. Henceforw

आज़ादी

बेबस हूँ बिखरी हूँ उलझी हूँ सत्ता के जालो में, एक दिवस को छोड़ बरस भर बंद रही हूँ तालों में, बस केवल पंद्रह अगस्त को मुस्काने की आदी हूँ, लालकिले से चीख रही मैं भारत की आज़ादी हूँ, जन्म हुआ सन सैतालिस में,बचपन मेरा बाँट दिया, मेरे ही अपनों ने मेरा दायाँ बाजू काट दिया, जब मेरे पोषण के दिन थे तब मुझको कंगाल किया मस्तक पर तलवार चला दी,और अलग बंगाल किया मुझको जीवनदान दिया था लाल बहादुर नाहर ने, वर्ना मुझको मार दिया था जिन्ना और जवाहर ने, मैंने अपना यौवन काटा था काँटों की सेजों पर, और बहुत नीलाम हुयी हूँ ताशकंद की मेजों पर, नरम सुपाड़ी बनी रही मैं,कटती रही सरौतों से, मेरी अस्मत बहुत लुटी है उन शिमला समझौतों से, मुझको सौ सौ बार डसा है,कायर दहशतगर्दी ने, सदा झुकायीं मेरी नज़रे,दिल्ली की नामर्दी ने, मेरा नाता टूट चूका है,पायल कंगन रोली से, छलनी पड़ा हुआ है सीना नक्सलियों की गोली से, तीन रंग की मेरी चूनर रोज़ जलायी जाती है, मुझको नंगा करके मुझमे आग लगाई जाती है मेरी चमड़ी तक बेची है मेरे राजदुलारों ने, मुझको ही अँधा कर डाला मेरे श्रवण कुमारों ने उजड़ चुकी हूँ बिना रंग के फगवा जैसी दिखती हूँ

जनाज़ा याकूब मेमन का

गाली देना,चुगली करना,है गुनाह इस्लाम कहे, और नही रोजे को रखना,है गुनाह इस्लाम कहे, दारू पीना,झूठ बोलना,है गुनाह इस्लाम कहे, मासूमों के गले घोटना,है गुनाह इस्लाम कहे, औरत का अपमान हुआ तो है गुनाह इस्लाम कहे, बेक़सूर का खून बहा तो है गुनाह इस्लाम कहे, फिर मुझको ये भीड़ बता दे कैसी धाँधलगर्दी है, क्यों सड़कों पर निकल पड़े क्यों कातिल से हमदर्दी है कातिल को शहीद माना आँखों पर परदे डाले हैं, कैसे कह दूं ये सारे इस्लाम मानने वाले है क्या विस्फोट कराने की इस्लाम इजाज़त देता है? क्या फिर खून बहाने की इस्लाम इजाज़त देता है? मज़हब में मारा मारी हो कब रसूल ने बोला है और वतन से गद्दारी हो कब रसूल ने बोला है, और अगर ये बोला भी है तो हमको भी बतला दो, ऐसा कोई पन्ना हमको भी कुरान में दिखला दो, अगर बाबरी का बदला था जो मेमन शैतान हुआ, मगर बाबरी से पहले भी घायल हिंदुस्तान हुआ, गर बदलों के यही सिलसिले सदियों से कायम होते, होली ईद दिवाली में खुशियों के ना आलम होते, भारत माँ भी आज रात को बड़े चैन से सो लेती, अच्छा होता यही भीड़ अब्दुल कलाम पर रो लेती, या तो मैं अँधा हूँ या फिर गलत सुनाई देता है, मुझे भीड़ में जलता ह

SSB Interviews: Ground Realities...!!!

Day 1 - The Day of Arrival Candidates will be asked to report at CMO of the particular railway station. At the pre-informed time they will be received by the officials and then after the formal verification of their identities they will be taken to the SSB center. After reaching the center actual verification of their documents will be done and their eligibility will be verified and then chest no’s will be allotted to them. In Air force (Refer 2nd Day), candidates will be offered breakfast in the morning only after which first round of tests will begin (as for Air Force the reporting time is generally 600 hrs and for ARMY it is around 1300 hrs). In case of Army after getting the chest no's.candidates will be allotted with temporary barracks for staying on that day. It’s recommended to get relaxed and get used to the things; environment and most importantly try to mingle with the group as much as they can as SSB is all about leadership and team management. Day2 - The Day of Screen

कर्मपथ

कर्मपथ कर्मपथ पर इस प्रखरतर, फूल भी हैं, शूल भी हैं, अल्पजन अनुकूल हैं, पर सैकड़ों प्रतिकूल भी हैं                    तालियों की टूट है                    पर गालियां भरपूर इस पर,                   संकटों के शैल शत शत                   मोह भ्रम के मूल भी हैं, किन्तु सुख दुःख से सदा ही एक सी अभिनन्दना ले चलते रहना तुम निरंतर चिर विजय की कामना ले 

Sometimes...when it happens...

Sometimes I feel...Sometimes I think...Sometimes I believe... Sometimes Life is like a Dream...     Sometimes Dreams are not what they Seems... Sometimes Laughter can heal our Hearts...     Sometimes its Laughter that breaks it Apart... Sometimes the World goes faster than We can go...     Sometimes even Fast is still too Slow... Sometimes Loneliness is what we Need...     Sometimes there is a Harvest without a Seed... Sometimes Darkness can be too Bright...     Sometimes Rain gives us Delight... Sometimes We think we Understood...     Sometimes We know We really Can't... Sometimes it seems Finishing things off is the Gain...     Sometimes its what that makes most Pain...

Why Married DAUGHTERS comes to visit their PARENTS...?

बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर बेटियाँ पीहर आती है अपनी जड़ों को सींचने के लिए  तलाशने आती हैं भाई की खुशियाँ वे ढूँढने आती हैं अपना सलोना बचपन वे रखने आतीं हैं आँगन में स्नेह का दीपक बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर ~~~ बेटियाँ ताबीज बांधने आती हैं दरवाजे पर कि नज़र से बचा रहे घर वे नहाने आती हैं ममता की निर्झरनी में देने आती हैं अपने भीतर से थोड़ा-थोड़ा सबको बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर ~~~ बेटियाँ  जब भी लौटती हैं ससुराल बहुत सारा वहीं छोड़ जाती हैं तैरती रह जाती हैं घर भर की नम आँखों में  उनकी प्यारी मुस्कान जब भी आती हैं वे, लुटाने ही आती हैं अपना वैभव  बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर प्यारे    पा पा, "बेटी" बनकर आई हु माँ-बाप के जीवन में, बसेरा होगा कल मेरा किसी और के आँगन में, क्यों ये रीत "रब" ने बनाई होगी, "कहते" है आज नहीं तो कल तू "पराई" होगी, देकर जनम "पाल-पोसकर" जिसने हमें बड़ा किया, और "वक़्त" आया तो उन्ही हाथो ने हमें "विदा" किया, "टूट" के बिखर जाती है हमारी "ज़िन्दगी " व

Sanskrit-The Mother of all Languages

Sanskrit is considered as a remote cousin of all the languages of Europe excepting the Finnish, Hungarian, Turkish and Basque. Around 2000 B.C an ancestral group of dialects arose among the tribesmen of South Russia. With Panini (probably 4th century B.C.) the Sanskrit language reached its classical form. It developed a little thence forward except in its vocabulary. The grammar of Panini, Asthadhyayi pre-supposes the work of many earlier grammarians. Latter grammars are mostly commentaries on Panini, the chief being Mahabhasya by Patanjali (Second Century B.C) and the Benaras-Commentary of Jayaditya and Vamana (Seventh Century A.D.). It was from the time of Panini on-wards, that the language began to be called Samskarta, perfected or refined, as opposed to Prakras (natural), the popular dialects which had grown over time. In all probability, Panini based his work on the languages as it was spoken in the North West. Beginning as the lingua franca of the priestly class, it gradually b