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Showing posts from September, 2015

जो हवाओं में है

जो हवाओं में है, लहरों में है वह बात    क्यों नहीं मुझमें है?     शाम कंधों पर लिए अपने ज़िन्दगी के रू-ब-रू चलना रोशनी का हमसफ़र होना उम्र की कन्दील का जलना आग जो     जलते सफ़र में है वह बात    क्यों नहीं मुझमें है?     रोज़ सूरज की तरह उगना शिखर पर चढ़ना, उतर जाना घाटियों में रंग भर जाना फिर सुरंगों से गुज़र जाना जो हंसी     कच्ची उमर में है वह बात    क्यों नहीं मुझमें है?     एक नन्हीं जान चिड़िया का डाल से उड़कर हवा होना सात रंगों के लिये दुनिया वापसी में नींद भर सोना जो खुला     आकाश स्वर में है वह बात    क्यों नहीं मुझमें है?