जनाज़ा याकूब मेमन का
गाली देना,चुगली करना,है गुनाह इस्लाम कहे, और नही रोजे को रखना,है गुनाह इस्लाम कहे, दारू पीना,झूठ बोलना,है गुनाह इस्लाम कहे, मासूमों के गले घोटना,है गुनाह इस्लाम कहे, औरत का अपमान हुआ तो है गुनाह इस्लाम कहे, बेक़सूर का खून बहा तो है गुनाह इस्लाम कहे, फिर मुझको ये भीड़ बता दे कैसी धाँधलगर्दी है, क्यों सड़कों पर निकल पड़े क्यों कातिल से हमदर्दी है कातिल को शहीद माना आँखों पर परदे डाले हैं, कैसे कह दूं ये सारे इस्लाम मानने वाले है क्या विस्फोट कराने की इस्लाम इजाज़त देता है? क्या फिर खून बहाने की इस्लाम इजाज़त देता है? मज़हब में मारा मारी हो कब रसूल ने बोला है और वतन से गद्दारी हो कब रसूल ने बोला है, और अगर ये बोला भी है तो हमको भी बतला दो, ऐसा कोई पन्ना हमको भी कुरान में दिखला दो, अगर बाबरी का बदला था जो मेमन शैतान हुआ, मगर बाबरी से पहले भी घायल हिंदुस्तान हुआ, गर बदलों के यही सिलसिले सदियों से कायम होते, होली ईद दिवाली में खुशियों के ना आलम होते, भारत माँ भी आज रात को बड़े चैन से सो लेती, अच्छा होता यही भीड़ अब्दुल कलाम पर रो लेती, या तो मैं अँधा हूँ या फिर गलत सुनाई देता है, मुझे भीड़ में जलता ह