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Showing posts from December, 2015

माँ

जब आंख खुली तो माँ की गोदी का एक सहारा था, उसका नन्‍हा सा आंचल मुझको भूमण्‍डल से प्‍यारा था । उसके चेहरे की झलक देख चेहरा फूलों सा खिलता था, हाथों से बालों को नोंचा पैरों से खूब प्रहार किया, फिर भी उस माँ ने पुचकारा हमको जी भर के प्‍यार किया।  मैं उसका राजा बेटा था वो आंख का तारा कहती थी, उंगली को पकड. चलाया था पढने विद्यालय भेजा था।  मेरी नादानी को भी निज अन्‍तर में सदा सहेजा था ।    मेरे सारे प्रश्‍नों का वो फौरन जवाब बन जाती थी,  मेरी राहों के कांटे चुन वो खुद गुलाब बन जाती थी।  मैं बडा हुआ तो कॉलेज से इक रोग, प्‍यार का ले आया,  जिस दिल में माँ की मूरत थी वो एक रामकली को दे आया।  शादी की, पति से बाप बना अपने रिश्‍तों में झूल गया,  अब करवाचौथ मनाता हूं माँ की ममता को भूल गया।    हम भूल गये उसकी ममता जो, मेरे जीवन की थाती थी, हम भूल गये अपना जीवन वो अमृत वाली माती थी।  हम भूल गये वो खुद भूखी रह करके हमें खिलाती थी, हमको सूखा बिस्‍तर देकर खुद गीले में सो जाती थी।  हम भूल गये उसने ही होठों को भाषा सिख

जीवन

मौत से पहले,मरना मत, परिणाम से पहले, डरना मत ! रगों में तेरे, खून है, आलस से, पानी,करना मत !! उम्मीद, जीत की रखना तू, स्वाद कर्म का, चखना तू! तू सोना है, कुछ कम तो नहीं, एकबार, कसौटी पर रखना तू !! तुझमे सारे है, भेद छुपे, तेरा कोई भी, पार नहीं ! दिल में, तूने जो ठान लिया, कभी जाता वो बेकार नहीं !! सब दौलत, तेरे दिल में है, फिर भी तू, मुश्किल में है ! तू ढूंढ़, खज़ाना अंदर का, फिर राजा, तू हर महफ़िल में है !! तू जोश जगा और डर को भगा, सारी बाधाये, छुप जायेंगी ! है कीमत, तेरी हिम्मत की, राहें फिर, शीश झुकायेगी !! पत्ता भी, दामन छोड़े ना, चाहे कितने, तूफ़ान चले ! सूख गये, जो ड़ाल पर, वो खा, पी कर भी नहीं पले !! भाग्यशाली हो, तुम कितने, तनिक इसका तुम, विश्वास करो ! सभी बातें, तुम में भी है, कभी खुद में, तुम तलाश करो !! है ज्ञान का, भण्डार तू, और मेहनत का, पहाड़ तू ! बकरी नहीं, तू शेर है, कभी खुल के, तो दहाड़ तू !! कहते है, जबतक सांस है, तबतक, पूरी आस है ! फिर निकल पड़ो, उस राह पर, जिस मंज़िल की,

सैनिक

जब तुलसी पर नागफनी की, पहरेदारी भाती है तब धरती भी गद्दारो के, रक्त की प्यासी हो जाती है। जब कुरुक्षेत्र में अर्जुन भी , कायरता दिखलाता है गदा युद्ध के नियम में , जब भीम भी चोटे खाता है। जब समाज में वस्त्र हरण को, पुरुषोत्सव समझा जाता है जब भी राजा, पुत्रमोह में, धृतराष्ट् बन जाता है। कोई भीष्म और द्रोण भी , सत्ता से बन्ध जाते हो कर्ण जैसे महावीर भी जब , जब सत्ता को समझ न पाते हो। और विदुर का निति ज्ञान जब , अंतिम साँसे गिनता हो तब पुनः भूत में जा गीता का,  पाठ पढ़ाना पड़ता है। पाञ्चजन्य के शंखनाद से , अलख जगाना पड़ता है देश धर्म की रक्षा के हेतू से,  शस्त्र उठाना पड़ता है। कृष्ण खड़े हो दूर तो भी, अभिमन्यु बन जाना पड़ता है चक्रव्यूह को भेदने को , पौरुष दिखलाना पड़ता है। संकट की घड़ियों में बस, सैनिक बन जाना पड़ता है। सैनिक बन जाना पड़ता है सैनिक बन जाना पड़ता है |