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Showing posts from August, 2015

Oldest, Biggest and Greatest Secret Society of the WORLD...!!!

The Nine Unknown Men According to occult lore , the Nine Unknown Men are a two millennia-old secret society founded by the Indian Emperor Asoka 273 BC. The legend of The Nine Unknown Men goes back to the time of the Emperor Asoka, who was the grandson of Chandragupta. Ambitious like his ancestor whose achievements he was anxious to complete, he conquered the region of Kalinga which lay between what is now Calcutta and Madras. The Kalingans resisted and lost 100,000 men in the battle. At the sight of this massacre Asoka was overcome and resolved to follow the path of non-violence. He converted to Buddhism after the massacre, the Emperor founded the society of the Nine to preserve and develop knowledge that would be dangerous to humanity if it fell into the wrong hands. It is said that the Emperor Asoka once aware of the horrors of war, wished to forbid men ever to put their intelligence to evil uses. During his reign natural science, past and present, was vowed to secrecy. Henceforw

आज़ादी

बेबस हूँ बिखरी हूँ उलझी हूँ सत्ता के जालो में, एक दिवस को छोड़ बरस भर बंद रही हूँ तालों में, बस केवल पंद्रह अगस्त को मुस्काने की आदी हूँ, लालकिले से चीख रही मैं भारत की आज़ादी हूँ, जन्म हुआ सन सैतालिस में,बचपन मेरा बाँट दिया, मेरे ही अपनों ने मेरा दायाँ बाजू काट दिया, जब मेरे पोषण के दिन थे तब मुझको कंगाल किया मस्तक पर तलवार चला दी,और अलग बंगाल किया मुझको जीवनदान दिया था लाल बहादुर नाहर ने, वर्ना मुझको मार दिया था जिन्ना और जवाहर ने, मैंने अपना यौवन काटा था काँटों की सेजों पर, और बहुत नीलाम हुयी हूँ ताशकंद की मेजों पर, नरम सुपाड़ी बनी रही मैं,कटती रही सरौतों से, मेरी अस्मत बहुत लुटी है उन शिमला समझौतों से, मुझको सौ सौ बार डसा है,कायर दहशतगर्दी ने, सदा झुकायीं मेरी नज़रे,दिल्ली की नामर्दी ने, मेरा नाता टूट चूका है,पायल कंगन रोली से, छलनी पड़ा हुआ है सीना नक्सलियों की गोली से, तीन रंग की मेरी चूनर रोज़ जलायी जाती है, मुझको नंगा करके मुझमे आग लगाई जाती है मेरी चमड़ी तक बेची है मेरे राजदुलारों ने, मुझको ही अँधा कर डाला मेरे श्रवण कुमारों ने उजड़ चुकी हूँ बिना रंग के फगवा जैसी दिखती हूँ

जनाज़ा याकूब मेमन का

गाली देना,चुगली करना,है गुनाह इस्लाम कहे, और नही रोजे को रखना,है गुनाह इस्लाम कहे, दारू पीना,झूठ बोलना,है गुनाह इस्लाम कहे, मासूमों के गले घोटना,है गुनाह इस्लाम कहे, औरत का अपमान हुआ तो है गुनाह इस्लाम कहे, बेक़सूर का खून बहा तो है गुनाह इस्लाम कहे, फिर मुझको ये भीड़ बता दे कैसी धाँधलगर्दी है, क्यों सड़कों पर निकल पड़े क्यों कातिल से हमदर्दी है कातिल को शहीद माना आँखों पर परदे डाले हैं, कैसे कह दूं ये सारे इस्लाम मानने वाले है क्या विस्फोट कराने की इस्लाम इजाज़त देता है? क्या फिर खून बहाने की इस्लाम इजाज़त देता है? मज़हब में मारा मारी हो कब रसूल ने बोला है और वतन से गद्दारी हो कब रसूल ने बोला है, और अगर ये बोला भी है तो हमको भी बतला दो, ऐसा कोई पन्ना हमको भी कुरान में दिखला दो, अगर बाबरी का बदला था जो मेमन शैतान हुआ, मगर बाबरी से पहले भी घायल हिंदुस्तान हुआ, गर बदलों के यही सिलसिले सदियों से कायम होते, होली ईद दिवाली में खुशियों के ना आलम होते, भारत माँ भी आज रात को बड़े चैन से सो लेती, अच्छा होता यही भीड़ अब्दुल कलाम पर रो लेती, या तो मैं अँधा हूँ या फिर गलत सुनाई देता है, मुझे भीड़ में जलता ह